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श्याम सूर्य से एक दिन बोला !
लाल लाल हो आग का गोला !!
प्रात: उगते पूरब ओर
तनिक न उस क्षण होता शोर
उस क्षण को हम कहते भोर
शान्ति शान्ति सर्वत्र ओर
पर ज्यो ज्यो ऊपर चढ़ते है
धीरे धीरे तुम बढ़ते हो
गर्म गर्म आँचल फैलाते
घर के अन्दर सब हो जाते
जाड़े मे तुम भाते हो
गर्मी मे मगर जलाते हो
हर दिन एक रंग बदलते हो
रोज निकलते ढलते हो
श्याम की सुनकर ब्यथा कथा
सूरज बोला ऐ सुनो सखा
जग मेँ जो स्वयँ हुआ करता
वह प्रक्रति नियम से ही होता
अभी हमे तुम नही समझते
है स्थिर हम कभी न चलते
तुम जिस प्रथ्वी पर चलते हो
उस पर चहुँ ओर घूमते हो
प्रथ्वी संग ऐसे चलते हो
तुम रोज बिछड़ते मिलते हो
कभी पास दूर हो जाते हो
कभी ओट छिप जाते हो
कुछ दिन फिर ऐसे आते है
हम दूर यू ही हो जाते है
ठंडक फिर आने लगती है
क्षण क्षण मे बढ़ने लगती है
कहते आया मौसम जाड़े का
आता यू ही मौसम जाड़े का
सुनो ध्यान से सुनो सखे !
हम प्रक्रति नियम से बँधे हुए
सोचो जब भी जो होता है
वह प्रक्रति नियम से होता है
सुनकर सूरज की मीठी बाते
चल दिया श्याम हँसते गाते
वह समझ गया था जो होता !
वह प्रक्रति नियम से ही होता !!
संजय कुमार तिवारी
ग्राम व पोस्ट इटैली
जनपद फतेहपुर
उ. प्र .
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