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ये कहानी है दिये और तूफान की “,…

कुछ कहना है कुछ करना है!
कुछ कहना है कुछ करना है!
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नमस्कार मित्रो, जागरण जँक्शन से जुड़ने के वे पुराने दिन, वे क्षण आज भी मेरे मानस पटल पर विघमान है ।साहित्यिक अभिरुचि ,व घर बैठे देश दुनिया से जुड़ने की लालसा , कुछ अपनी कहने व लोगो की सुनने का जब ये विशाल मँच मिला तो ये लगा कि दुनिया की सबसे बड़ी नेमत मिल गयी । …ले…कि…न दोस्तो पिछले वर्ष आज ही के दिन डाले गये उस पोस्ट के बाद कुछ ऐसा घटित हुआ कि मै शारिरिक और मानसिक रुप से अब्यवस्थित हो गया और जे जे से दूर होता चला गया अब जबकि पूरे साल घटित उन घटनाओ मे थोड़ा ठहराव आया तो स्वयमेव जे जे की ओर खिचा चला आया।
नये वर्ष व पुर्न मिलन के इस अवसर पर देश दुनिया मे घटित हो रहे नित नूतन घटनाओ पर बहुत कुछ कहने सुनने को है लेकिन आज मै उन पर चर्चा न करके पिछले वर्ष की उन घटनाओ को अपने ब्लाग मे कलम बध्द करके रखना चाहता हूँ जिनसे मै जीवन भर प्रेरणा लेते हुए आगे भी सँघर्श करता रहुँ ।
एक दिन की बात है जब हम ग्राम वासियो को ये पता चला कि मुझ सहित कुल आठ दस लोगो के बी पी एल राशन कार्ड़ कोटेदार कोटासँचालक व ग्राम प्रधानपति की मिलीभगत से गायब करके उन पर मिलने वाला अनाज पात्र लोगो को न देकर आपस मे बँदर बाट कर रहे है तो मन विद्रोह से भर उठा आपसी रजामँदी व विचार विमर्श के पश्चात सभी ने ये निर्णय लिया कि इस पर कोई न कोई कार्यवाही करनी चाहिए जिससे इस दबंगई पर रोक लगे तथा राशन वितरण भी उचित व सुचारु रुप से हो सके ।
ग्रामीणो के सहयोग व चँद ईमानदार लोगो के पहल पर राशन की दुकान सस्पेण्ड तो हो गयी लेकिन उसके बाद उन लोगो का वह रुप सामने आया जिस पर हम आशाँकित थे …एक दिन शाम को प्रधानपति कोटा सँचालक व उनके किराए के गुण्डे दुकान पर आये और गाली गलौज करते हुए धमकाने लगे खतरे को भाँपते हुए दूसरे दिन हम अपने एक साथी के साथ थाने गये जहाँ हमे समाजवादी थानेदार सँजय सिह यादव जी पहुँचते ही मिल गये शिकायत सुनाने के पूर्व ही उन्होने ऐसी घुड़की पिलायी कि हम समझ गये कि हमारे आने के पूर्व यहाँ कोई सेटिग हो गयी है …खैर एन सी आर देकर हम अपने दुकान आये ही थे कि पीछे से तीन पुलिस कर्मी आ धमके सवाल जवाब हुए हम अपनी बात चँद सेकेण्डो मे कह दिये अब बारी विपक्ष की थी जो पास ही कुछ दूरी पर थे वो वहाँ गये तो पूरे एक घण्टे लगा दिये तभी हम सशंकित हो उठे कि कुछ षड़यत्र किया जा रहा है पुलिश वाले वापस आये और बोले कि कल दोनो पार्टी थाने आये ।
इतना कहकर वे कुछ दूर ही गये होगे कि आठ दस लोग भरी बाजार मेरे व मेरे सर्मथको की दुकान पर चढ़ आये और वह उपद्रव किया जिसका हमे अनुमान नही था जैसे तैसे हम सबने अपनी तरफ से विवाद नही होने दिया और दूसरे दिन उच्चाधिकारियो के यहाँ पिताजी के साथ पहुँच गये …मगर मेरा धैर्य उस समय जवाब दे गया जब एस पी महोदय हमारी बातो पर तवज्जो न देते हुए हमे वापस उसी थाने जाने को कहने लगे जहाँ हमारे साथ अन्याय हुआ …अब हमे अहसास होने लगा कि ऊपर से नीचे तक सब एक जैसे है …आँखो के सामने अँधियारा सा छाने लगा कि अब क्या होगा जैसे तैसे हम थाने न जाकर घर वापस आ गये क्योकि हमे पता था कि वहाँ दौलत की सुनायी होगी न्याय की नही जैसे तैसे कुछ दिन बीते ,आये दिन हमे दबँगो के साथ साथ पुलिश वाले भी परेशान करने लगे ,गाँव वालो पर दबाव बना कर सँघर्श करने वालो की सँख्या दिन पर दिन कम करते जा रहे थे तब भी जब मै नही झुका तो खास होली के दूसरे दिन वही लोग लाठी डण्डे और असलहे लेकर मेरी दुकान पर चढ़कर मुझ पर व मेरे भाई पर हमला कर दिये भाई तो बचकर निकल गये लेकिन मै खून से लथपथ हो चुका था …थाने सूचना पहुँची थानेदार बनावटी व दिखावे का लबादा ओढ़कर आया और लाद फाद कर एक सिपाही के व्दारा अस्पताल पहुँचाया जहाँ 9 दिन मेरा इलाज चला …इतना होने के बाद भी मै झुकने को तैयार नही था। इस लड़ाई मे मेरा परिवार मेरे साथ था पर गाँव वाले एक एक कर साथ छोड़ते गये अब मै अकेला रह गया था दबँग अब भी दबँगई कर रहे थे इसी बीच मेरी शिकायत पर कोटे की दुकान सस्पेण्ट से निरस्त हो चुकी थी , दुकान बहाल कराने को कोटा सँचालक मामला कोर्ट मे पहुँचा चुका था अपने निजी सँसाधनो से मैने भी एक वकील को लगा दिया जिससे कि उसे स्टे न मिल सके और नयी दुकान नये (दलित)लोगो को मिल जाय …भ्रष्टाचारी शाशन ब्यवस्था से लड़ते भिड़ते एक साल होने को था जैसे तैसे करके पिछले दिसम्बर को नयी दुकान के लिए खुली बैठक आहूत करने के उद्देश्य से ग्राम सेक्रेटरी से डुग्गी पिटवा दी , एक बार फिर हाथ से निकलते दाँव को देख विपक्षी उत्तेजित हो उठा भाग दौड़ व पैसे के बल पर आखिर खुलीबैठक रद्द करा दी गयी उसी दिन मैने एक प्रार्थना पत्र एस डी एम खागा को प्रेषित कर उन्हे वस्तुस्थित से अवगत कराया जिससे कि पुनः खुली बैठक कराने का दबाव बनाया जा सके ।
मेरे इस पहल पर विपक्षी बौखला गया और उसी दिन रात मे अल्पसँख्यक वर्ग से सम्बन्धित नये जुड़े मेरे एक सहयोगी के यहाँ धावा बोल दिया और उसके पिता को घायल कर दिया , अब दूसरे दिन बारी मेरी थी अलसुबह 19 .12 2013 हमे हमारी दुकान पर चारो ओर से घेर लिया गया मुझे खतरे का अँन्देशा था जैसे तैसे हम दोनो भाई अपने को बचा ले गये .एक बार फिर न्याय की उम्मीद पर थाने गये कि दरोगा जी बदल गये है शायद ये वैसे नही होगे दोनो पक्ष आमने सामने थे उधर से एक बोला कि अजय ( भाई)ने मेरे ऊपर साइकिल चढ़ा दी थी मेरे भाई ने प्रतिवाद करना चाहा था कि एस ओ महोदय गरजे, $&£€ बँद कर दो सालो को 4 डण्डे लगा कर उस पक्ष से मात्र एक नाबालिग को और इधर हम दोनो को बिठा लिया गया पूरा दिन पूरी रात फिर पूरा दिन कुछ पता नही था क्या होगा मुझे अपनी फिक्र नही थी भाई की स्थिति देख कर चिन्तित था शाम को कुछ परिचित आये हम और भाई को वह ऐसे देख रहे थे जैसे बहुत बड़ा गुनाह कर के आये थे .,बोले,.. गाँव वालो के लिए मर रहे हो कोई आया गाँव से एक गवाही , चले अन्ना केजरीवाल बनने, हम निरुत्तर थे हमारी बेबसी और मौन सहमति को वे समझ चुके थे…आखिर अनगिनत तूफानो के आगे फिलहाल एकदीपक बुझ चुका था ….

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